मन से बड़ा बहरूपी ना कोई, पल पल रचता स्वांग निराले
माया ममता में उलझा रहे वो, पड़ जाये जो मन के पाले
मन के बहकावें में न आ, मन राह भुलाये भ्रम में डाले
तू इस मन का दास ना बन, इस मन को अपना दास बना ले
“मन से बड़ा बहरूपी ना कोई, पल पल रचता स्वांग निराले”। ये पंक्तियाँ मन की अस्थिरता और उसकी असीम कल्पनाशक्ति को दर्शाती हैं। हमारा मन हर पल कुछ नया सोचता है, कुछ नया रचता है। यह बाहरी दुनिया की तरह रंग बदलता है, और हमें उसके जाल में उलझाने का प्रयास करता है। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या हम इस मन के गुलाम बनकर जीवन जीते हैं, या इसे अपने नियंत्रण में रखते हैं?
मन की माया और मोह
“माया ममता में उलझा रहे वो, पड़ जाये जो मन के पाले”।
मन, माया और मोह का अटूट संबंध है। मन बाहरी चीज़ों से जुड़ाव करता है—धन, संपत्ति, परिवार, समाज—और हमें इस ममता में उलझा देता है। यह मोह हमें हमारे असली लक्ष्य से भटकाने का काम करता है। भगवद गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि मन की स्थिरता और संयम ही सच्ची शक्ति है। अगर मन माया और मोह के बंधनों में फंसा रहे, तो वह न तो सच्ची खुशी पा सकता है और न ही आत्मज्ञान।
मन के बहकावे और भ्रम
“मन के बहकावें में न आ, मन राह भुलाये भ्रम में डाले।”
मन अक्सर हमें ऐसे विचार देता है जो वास्तविकता से दूर होते हैं। यह हमें भय, भ्रम और झूठी आकांक्षाओं के दलदल में खींच लेता है। यही कारण है कि भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने ‘मन का दास न बनने’ की शिक्षा दी है। वे कहते हैं, “मन ही हमारा सबसे बड़ा मित्र है और सबसे बड़ा शत्रु भी।” यदि हम अपने मन को संयमित कर सकें, तो वह हमारे लिए शक्ति का स्रोत बन सकता है।
मन को दास बनाना
“तू इस मन का दास ना बन, इस मन को अपना दास बना ले।”
मन को दास बनाने का अर्थ है इसे अपने नियंत्रण में रखना। यह तभी संभव है जब हम अपने भीतर जागरूकता और आत्मबल को जागृत करें। योग और ध्यान के माध्यम से हम अपने मन को स्थिर कर सकते हैं। जब मन स्थिर होगा, तो हम स्पष्ट रूप से सोच पाएंगे और सही निर्णय ले पाएंगे।
श्रीकृष्ण कहते हैं, “जो मनुष्य अपने मन को जीत लेता है, वह संसार में विजयी होता है।” यह कथन स्पष्ट रूप से बताता है कि मन को नियंत्रित करना ही सच्ची विजय है।
निष्कर्ष
मन एक बहुरूपिया है, लेकिन इसे संयमित करना संभव है। इसके लिए हमें माया, मोह और भ्रम से परे जाकर अपनी आंतरिक शक्ति और चेतना को पहचानना होगा।
मन को दास बनाना आसान नहीं है, लेकिन नियमित अभ्यास, आत्मनिरीक्षण और ईश्वर में विश्वास से यह संभव हो सकता है।
तो याद रखें, मन के दास मत बनें। इसे अपनी इच्छाशक्ति और समझदारी से नियंत्रण में लाएं और जीवन को सही दिशा में ले जाएं।
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